Poetry : ​परोजन, परजुनिया और गारी...

परोजन, परजुनिया और गारी...
गाँव देश में भैया....
कौन परोजन ऐसा है बीता....?
जेहमें परजुनिया सब,
सुनी न होवैं सबकी गारी....
नाउन कै....रंग रहत है फीका...
चुड़िहारिन की कच्ची रहत है चूड़ी...
रहता बारिन के चूना कच्चा,
हलवाई कै कच्ची रहती सब पूड़ी...
बिना नाप के जामा-जोड़ा,
जो अकसर लेकर आवै नाऊ....
घूरि-घूरि के सब जन देखें ,
गारी देवें बड़के दाऊ...
जो कुल्हड़ कुछ फूटल निकलेन,
समझ ल...कोहार के सामत आईल,
संग ईही के....गुस्सा में भैया...!
लड़िकन से सब पुरवा-पत्तल,
अलग-अलग....गईल गिनवाइल...
लुहरा के बँसुला कै धार देखि-देखि,
हर कोई हरदम गरियावैला....
ताना मारि-मारि कहै सब कोई,
कौनो काम..ई ससुरा के ना आवैला
दर्जी के नाप-जोख और फिटिंग पर
आवै ला गज़ब-गज़ब के कमेंट...
आव-ताव देखे बिना,
उसे चूतिया घोषित करने का ही,
होता है सबका जजमेंट...
पूरे परोजन में धोबी-धोबन के...!
जैसे-तैसे जान बचैले....
बात-बात पर दुनहुन कै.
हर ओरी खालै उधरैले....
पानी भरत-भरत रे भैया.....!
कहार कका के पेट-कमर,
भले जहन्नुम में चलि जाय....
फिर भी पानी से प्यारे....!
केहू न उनसे कबहुँ अघाय....
पंडित जी कै भी....ना एकौ पद छूटा
मड़वे में भड़वा कहकर....!
महिलाओं ने महफिल हरदम लूटा...
सच बताऊँ प्यारे मित्रों....!
गर कोई यह बात कहे,
कभी सुनी ना उनने
कार-परोजन में कोई गारी....
बस इतना जानो भैया....!
मति गई है उसकी मारी....और...
सौ प्रतिशत मानो उसको झूठा....
अलबत...एक बात कहूँ मैं मित्रों....
कुलि गारिन के बाद भी.....
गाँव-देश में देखो प्यारे...
इनका आपस का रिश्ता....!
होता कितना अद्भुत और अनूठा....
हँसि-हँसि के सब धरम निभावे,
केतनो केहू होवे रूठा.....
हिसाब-किताब रखि एक तरफ,
सब निज-निज फ़र्ज़ निभावै...औ...
उठती डोली के संग भैया
घरवालन के संग सब परजुनियन के,
कण्ठ मिलत है रुँधा-रुँधा...
रचनाकार: जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ।

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