सब्र त्याग और इख़्लास सिखाती है कुरबानी : मौलाना अब्दुल जाहिर सिद्दीकी
जौनपुर। कुर्बानी, अल्लाह के लिए एक जानवर की बलि देने की प्रथा है। हर साल, ईद अल-अजहा (10 से 13 जिल हिज्जा इस्लामी जंतरी का आखरी महीना) के दिन, दुनिया भर के मुसलमान अपनी अपनी हैसियत के मुताबिक हज पूरा होने के उपलक्ष्य में एक जानवर की बलि देते हैं। यह प्रथा 5 हजार साल पहले पैगंबर इब्राहिम (अ. स.) की सुन्नत मानी जाती है, जो आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद स अ ने भी बदस्तूर जारी रखी।इसी क्रम में जौनपुर में शाही ईदगाह मछलीशहर पड़ाव पर ईद की नमाज सुबह 8:15 पर मौलाना जाहिद ख़ुसैमा सिद्दीकी ने अदा कराई। उन्होंने अपने ख़ुतबे में बताया कि बकरीद का त्योहार वास्तव में समाज के प्रति समर्पण का त्यौहार है, लोगों को अपने समाज व अपने पड़ोसी के बीच सामंजस्य के साथ-साथ प्रेम और भाईचारे के साथ रहना चाहिए किसी के भी हुकुक को नहीं मारना ही सच्ची कुर्बानी है।
मौलाना ने अपने ख़ुतबे में कहा कि कौम के लोगों को चाहिए कि वह व्हाट्सएप और यूट्यूब से तकरीर जो सुनते हैं उसके बारे में भली भांति जान लें और कोशिश यह करें कि उनके क्षेत्र के जो आलीम है किसी भी जानकारी के लिए वह अपने नजदीकी आलीम की बात को ही मानें क्योंकि यूट्यूब और व्हाट्सएप पर जो इस्लाम के ताल्लुक से विभिन्न प्रकार की बातें कही जा रही हैं उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। शाही ईदगाह में मुख्य रूप से नेयाज ताहिर शेखू, रियाजुल हक़ खान, सचिव मोहम्मद शोएब खान, अजीम जौनपुरी, हाजी इमरान, जफर राजा, एडवोकेट मुमताज मंसूरी, आमिर कुरैशी, एडवोकेट शमीम, मास्टर तुफैल अंसारी, अबुजर अंसारी, मौलाना ताज, मौलाना आफाक इत्यादि मौजूद रहे।
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