आज हमारे समाज की जो विघटित स्थिति है, उसका मुख्य कारण सामाजिक हीनता की भावना है। यदि हमारे पूर्वज, जिन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी, उन्होंने समय रहते कलचुरी वंश के गौरवपूर्ण इतिहास को जन-जन तक पहुँचाया होता तो आज हमारा समाज विभिन्न वर्गों में विभाजित नहीं होता।
"कलवार" शब्द के प्रति समाज में जो नकारात्मक भावनाएँ देखने को मिलती हैं, उसका एकमात्र कारण यही है कि हम अपने गौरवशाली अतीत को लोगों तक पहुँचा नहीं पाये जबकि अन्य समाज अपने इतिहास को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं, उसका प्रचार-प्रसार करते हैं और अपनी पहचान को सशक्त बनाते हैं— वहीं हम इस दिशा में पीछे रह गये।
कलचुरी वंश का इतिहास अत्यंत भव्य और प्रेरणादायक रहा है परंतु उसे न तो उचित मंच मिला और न ही समाज ने उसे अपनाने का गंभीर प्रयास किया। दुर्भाग्यवश आज भी हमारे समाज के लोग इस इतिहास की उपेक्षा कर रहे हैं।
वर्तमान में समाज के विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भगवानों के फोटो साझा किए जाते हैं जिनका इन प्लेटफॉर्म्स पर कोई विशेष औचित्य नहीं होता। यदि इसी ऊर्जा और उत्साह को हम अपने समाज के इतिहास और पहचान को जागरूक करने में लगायें तो समाज की दिशा और दशा दोनों बदल सकती हैं।
ऐसे समय में जब अधिकांश लोग केवल चर्चा करते हैं। कौन्तय जायसवाल जैसे विद्वान इतिहासकार अपने व्यक्तिगत संसाधनों से कलचुरी वंश के इतिहास की खोज और शोध में लगे हुए हैं। हमें ऐसे महान शोधकर्ताओं का आभार व्यक्त करना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिये जिन्होंने हमारे समाज के स्वाभिमान और गौरव को पुनः जीवित करने का कार्य किया है।
अब समय आ गया है कि हम सब एकजुट होकर कलचुरी वंश की गौरवगाथा को जन-जन तक पहुँचाएँ, नई पीढ़ी को इससे जोड़ें और समाज में अपनी वास्तविक पहचान को पुनः स्थापित करें।
राजेन्द्र सेठी जायसवाल
जयपुर, राजस्थान
"कलवार" शब्द के प्रति समाज में जो नकारात्मक भावनाएँ देखने को मिलती हैं, उसका एकमात्र कारण यही है कि हम अपने गौरवशाली अतीत को लोगों तक पहुँचा नहीं पाये जबकि अन्य समाज अपने इतिहास को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं, उसका प्रचार-प्रसार करते हैं और अपनी पहचान को सशक्त बनाते हैं— वहीं हम इस दिशा में पीछे रह गये।
कलचुरी वंश का इतिहास अत्यंत भव्य और प्रेरणादायक रहा है परंतु उसे न तो उचित मंच मिला और न ही समाज ने उसे अपनाने का गंभीर प्रयास किया। दुर्भाग्यवश आज भी हमारे समाज के लोग इस इतिहास की उपेक्षा कर रहे हैं।
वर्तमान में समाज के विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भगवानों के फोटो साझा किए जाते हैं जिनका इन प्लेटफॉर्म्स पर कोई विशेष औचित्य नहीं होता। यदि इसी ऊर्जा और उत्साह को हम अपने समाज के इतिहास और पहचान को जागरूक करने में लगायें तो समाज की दिशा और दशा दोनों बदल सकती हैं।
ऐसे समय में जब अधिकांश लोग केवल चर्चा करते हैं। कौन्तय जायसवाल जैसे विद्वान इतिहासकार अपने व्यक्तिगत संसाधनों से कलचुरी वंश के इतिहास की खोज और शोध में लगे हुए हैं। हमें ऐसे महान शोधकर्ताओं का आभार व्यक्त करना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिये जिन्होंने हमारे समाज के स्वाभिमान और गौरव को पुनः जीवित करने का कार्य किया है।
अब समय आ गया है कि हम सब एकजुट होकर कलचुरी वंश की गौरवगाथा को जन-जन तक पहुँचाएँ, नई पीढ़ी को इससे जोड़ें और समाज में अपनी वास्तविक पहचान को पुनः स्थापित करें।
राजेन्द्र सेठी जायसवाल
जयपुर, राजस्थान
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