ऑपरेशन सिन्दूर से बजी रणभेरी,
अब नहीं करेंगे हम और कोई देरी,दुश्मन के अंदर घुस कर हम मारेंगे,
पुलवामा, पहलगाम के बदले लेंगे।
सैनिकों की वीरता को सलाम,
जवानों के साहस को प्रणाम,
भारत के सामने नतमस्तक है,
दुनिया भर का हर खासो आम।
धर्म, जाति, वर्ग में नहीं बँटेंगे हम,
बेगानापन बिल्कुल नहीं सहेंगे हम,
रूखी सूखी बाँट कर खा लेंगे हम,
पछत्तर वर्ष का बोझ उतारेंगे हम।
आस्तीन में साँप छिपे हैं डसने को
इनसे बच करके आगे जाना होगा,
फुफकार रहे हैं हर एक मोड़ पर,
इनके भय से निर्भय रहना होगा।
जनसंख्या के जंगल, गली गली में,
भयानक कोबरे छिपे हैं हर बिल में,
अवसरवादी डंक मारकर डसते हैं,
कायरता की मिशाल पेश करते हैं।
वीर नागरिक, सैनिक भारत के,
जंगली झाड़ियों में उन्हें खोजते हैं,
कोबरे केंचुल धारण कर छिपे हैं,
आदित्य बिलों में बिलबिलाये हैं।
डा. कर्नल आदिशंकर मिश्र
विद्या वाचस्पति, लखनऊ।
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